Sunday, March 7, 2010

विशेष रूप से वहन व सावधानी पूर्वक निभाने योग्य संबंध ही विवाह हैं|

विवाह शब्द वि+वाह से बना हैं| वि विशेष या महत्वपूर्ण विशिष्ट के लिए प्रयुक्त हुआ है तो वाह का अर्थ हैं वहन करना ,ढोना ,बोझ उठाना यथा माल वाहक=माल ले जाने वाला, निवाँह=गुजारा करना प्रवाह= बहाव आदि|
कुछ  जातक  अज्ञानता वश विवाद तथा विवाह का अन्तर भुल जाते है| वे शायद यह नही जानते 'द'का अर्थ है दाता तथा 'ह' का अर्थ है हरणं करने वाला मिटाने वाला| जहां विवाद में दुसरे के दोषों व दुरबॅलता को उजागर कर उसे शत्रु मानते हुए नीचे दिखाने का प्रयास किया जाता है|  इसके विपरीत विवाह में दुसरे के दोष व दुबॅलताओ की अनदेखी कर उन्हे छिपाकर, स्नेह व आत्मीयता के साथ उसे    सम्मान  दिया जाता है| विवाह में तो सभी विषमता दुरबलता व दोष का हरण है, स्ने हपूण निरकरण है या फिर उन्हें सवीकार कर धैयपूर्वक सहना है| 
रति या मैथुन को विद्धानो ने पाशविक कर्म माना हैं| उनका कहना है पशु पक्षी तो मात्रा विशेष ॠतु में ही कामोन्मुख होते हैं किन्तु मनुष्य तो शायद पशुओं से भी हीन है| प्राचीन मनीषियो ने गहन चिन्तन मनन के बाद काम को नियंत्रित कर विवाह प्रणाली को विकासित किया  समाज में सुख शान्ति बनाए रखने के लिए  अगम्यागमन का निषेध किया| परस्त्री आसक्ति की निन्दा की| इतनी ही नही विवाह को धार्मिक सामाजिक समारोहों के रूप में मान्यता दी उसे गरीमा मंडित किया पत्नी को धर्मपत्नी की संज्ञा दी |यज्ञ व सभी धार्मिक अनुष्ठानों में पत्नी को बराबर का स्थान दिया उसकी उपस्थिति अनिवार्य मानी गई विवाह में वर को विष्णु तथा वधु को लक्ष्मी का रूप मानकर उनकी पूजा करने की परम्परा आज भी प्रचलित है| राम विवाह, शिव विवाह राधा विवाह का शास्त्रो में विस्तार पूवर्क किया गया है|

    विवाह  गृहस्थ आश्रम का प्रवेश द्धार है| घर परिवार समाज की ईकाई है घर के योगदान से समाज  मजबुत होता है तो समाज के सहयोग व सहायता से परिवार में सुख शान्ति बढ़ती है बालक के जन्म से परिवार बढ़ता है तो समाज का भविष्य भी सुरक्षित होता है |बच्चों के पालन -पोषण के लिए धर परिवार में  स्नेह सौहार्दपूर्ण वातावरण आवश्यक है| किसी विवाह का टूटना मात्र दो ब्यक्तीयो का अलग हो जाना नहीं बल्कि परिवार व समाज का बिखराव है| बचपन की बगिया में कंटीली झाड़ियों का उगना जिससे न केवल वर्तमान आहत होता है बल्की भविष्य भी मुरझा जाता है| जब कभी विवाह का प्रशन हो तो ज्योतिषी का फर्ज हैं कि वह विवाह का महत्त्व स्वयं समझें व दुसरे को भी समझाएं| 
        मानव मन की कामेच्छा को नियमित व नियंत्रित करने के लिए ही विवाह संस्था बनायी गईं| योग एक प्रकार से कामेच्छा को नियमित एवं नियंत्रण करने की प्रकिया ही है| लेकिन अगर सभी योगी बन जाएंगे तो सृस्टी   के विस्तार जीवन मत्यु की प्रकि्या में व्यवधान आ जाएगा| इसलिये समाज में  विधिपूर्वक शुक्र को नियंत्रण करने के लिए मनीषियों ने विवाह प्रकि्या का सृष्टि में प्रावधान किया|  प्रत्येक व्यक्ति के लिए कामेच्छा की नियमित व निमन्त्रण में रखना उसके अपने वश में नहीं है इसकों ज्यादा नियन्त्रित करने में  यह अनियंत्रित हो जाती है और दुरचार को बढावा मिलता है| उस स्थती में व्यक्ति और पशु में कोई अन्तर नहीं रह जाता| समाज में यौन दुराचार पर अंकुश लगाना एक स्वस्थ व सुखी समजा निमार्ण करना ही इसका उद्देश्य था
     भावी संतती देह व मन से स्वास्थय व सबल हो इसके लिए विवाह पूर्व शौर्य प्रदर्शन तथा  बुद्धि बल परीक्षा या स्पधाँ का आयोजन एक सामान्य बात थी| कन्या को भी विविध कलाओं तथा विधाओ में निपुण बनाने का प्रयास होता था उसका यह करणा होता की उस कन्या का विवाहित जीवन सुखी व खुशहाल हो|


विवाह व परिभाषा व भेद फिर कभी समय मिलने पर पोस्ट करोगा

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