Friday, April 30, 2010

कुडंली में शुक्र की स्थिति

शुक्र एक शुभ एंव रजोगुणी ग्रह है,विवाह, वैवाहिक जीवन, प्यार, रोमांस, जीवन-साथी तथा यौन सबंधो का नैसर्गिक कारक होने से शुक्र को कलत्रं कारक कहा जाता है| कुडंली में शुक्र का विशेष महत्व है कारण शुक्र को कामदेव का प्रतिनिधी माना है| यही शुक्र दैत्य गुरु होने से, लौकिक सुख, संपदा तथा वैभव देने वाला भी है, इसके अतिरिक्त शुक्र, सौंदर्य, जीवन के आनन्द, वाहन, सुगंध, सौंदर्य प्रसाधन आदि का भी कारक है| स्त्री की कुडंली में भी शुक्र की स्थिती अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि शुक्र पर दूषित प्रभाव का सीधा सादा अर्थ है दांपत्य जीवन तथा संबंधो को हानि|
यदि शुक्र का दष्टि-युति संबंध सप्तम भाव तथा तामसिक ग्रहो शनि, राहु, सरीखे पाप ग्रहो के साथ हो तो स्त्री के कारण, शारिरिक व मानसिक यातना, जातक की नियति बन जाती है| साथ ही साथ दशम भाव भी पाप गस्त हो तब तो विवाह दुर्भाग्य का कारण बन जाता है
भावों की दष्टि से शुक्र की त्रिक भावों में स्थिती दांपत्य जीवन के लिए अनिष्टकारी है, लग्न से दुःस्थान (त्रिक भाव) षष्ठ, अष्टम, दादश भाव है| सप्तम भाव से षष्ठ, अष्टम, दादश भाव भी शुक्र के लिए दांपत्य जीवन के संदर्भ में अनिष्टकारी है| यधपि दादश भाव में शुक्र अधिक धन व वैभव प्रदान करता है तथापि वैवाहिक जीवन के लिए घातक है| षष्ठ भाव में बैठकर भी शुक्र धन की कमी नहीं रहने देता, परन्तु यह भाव सप्तम से दादश होने के कारण शुक्र दांपत्य जीवन को हानि पहुचाता है|
शुक्र यदि तामसिक ग्रहो शनि, राहु, मंगल या केतु के नक्षत्रों में अथवा शनि या मंगल राशियों में हो तो अधिक दूषित होता है| इसी प्रकार यह शनि, राहु, मंगल, केतु या सूर्य की युक्ती, द्ष्टि या मध्यत्व से भी दूषित हो जाता है| शुक्र पर उपरोक्त ग्रहो के प्रभावसे दुश्चरित्रता, विवाह हीनता, विलंब से विवाह, जात्येतर विवाह, इतर यौन संबंध, अलगाव, तलाक अथवा कष्टप्रद वैवाहिक जीवन आदि फल घटित हो सकते है| 
मैंने कईं कुडंलीयो से यह भी देखा है कि बुध के नवांश में शुक्र अथार्त नवांश कुडंली में अगर शुक्र मिथुन या कन्या राशि में हो तो भी उपरोक्त फल घटित हो सकते है| चाहे जन्म के समय में शुक्र स्वराशि  स्वनक्षत्र, अथवा उच्च राशि में ही क्यों न हो, यदि बुध के नवांश में हो तो निश्चित रूप से दांपत्य जीवन पर उपरोक्त विपरीत  प्रभाव पड़ते है| वैसे शुक्र को बुध का मित्र माना जाता है शुक्र नीच राशि कन्या में हो तो स्त्री का चरित्र संदेह प्रद रहता है| इन्हीं राशियों में यदि शुक्र नवांश में हो तो उपरोक्त फल निश्चित होता है| यदि शुक्र सप्तमेंश-मेष या वृश्चिक लग्न होकर उपरोक्त प्रकार से दुषित हो अथवा शनि, राहु, सूर्य, मंगल या केतु द्धारा पीड़ित हो तो स्थिति और भी भंयकर हो जाती है क्योंकि शुत्रु सप्तमेंश व कलत्र कारक के रूप में अथार्त दोहरी भूमिका में दुषित होता है| सप्तम भाव में भी शुक्र दांपत्य जीवन के लिए अच्छा नहीं माना जाता| 
दांपत्य जीवन की शुभाशुभता का आकलन ग्रह मेलपक के अंतर्गत किया जाता है |

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