Wednesday, April 7, 2010

बीकानेर की स्थापना एंव माँ करणीमाता

बीकानेर की स्थापना विक्रम संवत 1543 में राव बीक ने शनिवार के दिन अक्षय दि्तिया को कि थी| गुजरात में जूनागढ़ शहर का नाम है मगर बीकानेर में किले का नाम जूनागढ़ है| बीकानेर के छठे शाशक राजा रायसिंह ने 17 फरवरी 1589 को इसका निर्माण कार्य आरभ्भ करवाया था यह छः बरसों में बनकर तैयार हुआ| इसके बाद भी सोलह पीढ़ियों के शाशकों ने इसका विकास करवाया इसके भीतरी भाग में बने महल उन राजाओं की कला प्रियता के साक्षी है|
यह किला 40 फुट ऊंची तथा 14.5 फुट चौड़ी विशाल दीवारों से घिरा है|
जूनागढ़ में प्रवेश के लिए पूर्व में करण पोल व पश्चिम में सिंह पोल बनें हुए है|अब करण पोल से प्रवेश किया जा सकता है दोनों ही विशाल द्धारो के फाटक लोहे की जंगी कीलो से लैस है जिन्हें तोड़ना असभ्भव था|
महलों की और जाने के लिए सूरज पोल से प्रवेश करना होता है जो कि जैसलमेरी पत्थर से बना है व इस पर राजा रायसिंह की प्रशस्त खुदी हुई है इसी पोल में गणपति गणेशजी का मंन्दिर है जहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है
सूरज पोल से प्रवेश करते ही सामने विशाल मैदान है दाईं और 360 फुट गहरा रामसर कुंआ है महाराजा गंगासिंह इसी कुंएं का पानी पीते थे तथा विदेश में भी यही का पानी लेकर जाते थे|
बीकानेर से 30k.m दुर देशनोक में माँ करणी का मंन्दिर है करणीमाता बीकानेर राजघराने की कुल देवी है राजा-महाराजा जब भी कोई भी शुभारंभ करते तो माँ  करणी के दर्शन करने देशनोक आकर कार्य सिद्धि के लिए जोत-आरती करके कार्य के लिए जाते थे| यह मंन्दिर चुहों के नाम से भी जाना जाता है| यहां चुहों को गांववाले काबा कहकर संबोधित भी करते है| यहाँ सफेद काबा का दर्शन होना ही कार्य सफलतापूर्वक होना माना जाता है| व्यक्ति अपने आप में भाग्यशाली मानता है अगर दर्शन हो जाए| चुहो से कोई  बीमारीया भी नहीं फैलती ऐसा करणीमाता  का आशीर्वाद ही तो है| देश-विदेश से रोजाना हजारों माँ के भक्त दर्शन के लिए आते है| जाते वक्त माँ का आशीर्वाद लेकर जाते है| मैं भी अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हुँ कारण मेरा जन्म इसी गांव में हुआ हैं, यह सब माँ करणी का  आशीर्वाद ही मिला मानता हुँ|

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