Thursday, March 18, 2010

सुख-समृद्धि का दाता शनिदेव

ज्योतिष का प्रथम धर्म है कुंडली देखते समय जातक के जीवन में उत्साह व आशा का संचार करना तथा कर्म के प्रति प्रेरणा ऊर्जा प्रवाहित करना| ज्योतिष शास्त्र का भी यही अर्थ है- ज्योती दिखाने वाला शास्त्र'| दुर्भाग्य से कुछ तथाकतिथ भविष्य वक्ताओ ने शनि राहु व केतु के प्रति अपनी दुकान सुचारू रूप से चलाने के लिए अनर्गल तथ्यों का प्रचार कर रखा है| शनिदेव के गुण जो न समझता हो उसके रोंगटे दशा-अंतर्दशा अथवा ढ़या या साढ़ेसाती चल रही है चलने वाली है जैसे शब्द सुनकर रोगटे ही खड़ें हो जाते है| वास्तव में ऐसा  नहीं है जिस प्रकार शेष सभी ग्रह शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के फल देतें है, उसी प्रकार ही शनि देता है|
शनि ग्रह को ज्योतिष में काल कहा गया है जिसका अर्थ लोग मृत्यु समझते है काल का अर्थ है समय-सुचक अर्थात घटनाओं के घटित होने का समय निधार्रित करने वाला ग्रह| शुभ अशुभ दोनों प्रकार के फल मिलने का समय शनिदेव निधार्रित करते है|
तुला लग्न के जातकों के लिए शनि अपनी दशा-अन्तर में कृपा की बरसात कर देते है धन विवाह, उत्सव व संम्मान सभी कुछ इस काल में शनि कि देन है
वास्तव में साढ़ेसाती को मन अतिरिक्त बोझ व जिम्मेवारी का समय कहकर परिभाषित किया जा सकता है| जैसे खाली बैठे ब्यक्ति को नौकरी मिलना| किराये के मकान में रहते अपना मकान बनाना इत्यादि मन पर अतिरिक्त बोझ व जिम्मेदारी तो बढ़ाते है पर कष्ट नहीं देते| साढ़ेसाती अथवा कंटक शनि की दशा में शनिदेव जातक को इतनें उच्च पद पर आसीन कर देते है कि जातक अपने परिवार, रिश्तेदार.व मित्रों को समय नही दे पाता तथा निंदा का प्रात्र बनता है| शनिदेव सुख-संपदा देने में किसी भी ग्रह से पीछे नही है|

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