Friday, March 5, 2010

दांपत्य सुख का ज्योतिषीय आधार

  विवाह एक जाटिल संस्था है| जब मान, मुल्य, धामिक आस्था व परपराऐ बिखरने लगें तथा स्वाथॅ, सता लोभ को प्राथमिकता मिले वहां विवाह पर कुछ भी कहना मानों शत्रुता मोल लेना है| एक बार अमेरिका में किसी न्यायधीश  ने कहा था विवाह अनुबंध अन्य किसी भी प्रकार के अनुबंध से भिन्न है| यदि कोई व्यापारीक गठबंधन टुटता है| तो मात्र संबंधित दो दलों पर ही इसका प्रभाव पड़ता है| इसके विपरीत विवाह विच्छेद मात्र दो व्यक्तियो को ही नहीं अपितु परिवार व समाज को झकझोर कर रख देता हैं| बिखरे परिवार के बच्चे असुरक्षा की भावना में पलते व बढ़ते है| तो कभीं समाज विरोधी कायौ मे समलित हो जाते है| इस प्रकार देश व समाज की खुशहाली में बाधा पड़तीं है|
१ विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश द्वारा  है| देश व समाज का भविष्य को सजने संवारने की विधा है|पति-पत्नी का परस्पर प्रगाढ प्रेम बच्चों मे स्नेह, संवेदना परस्पर सहयोग व सहायता के गुणो को पुब्ट करता है| भावी पीढ़ी में सहजता सजगता व सच्चाई देश के भविष्य को उज्ज्वल बनती है| वैवाहिक जीवन में सभी प्रकार के तनाव व दबाव सहने की क्षमता का आंकलन करने के लिए भारत में कुंडली मिलान विधा का प्रयोग शताब्दीयो से प्रचलित है|
( 2 )  यदि सप्तम भाव हीनबली है तो उसका मिलान ऐसी कुंड़ली से जो उस अशुभता का प्रतिकार कर सके| उदाहरण के लिए मंगलीक कन्या के लिए मंगलिक वर का ही चयन करें| कुंड़लियो का बल परास्पर आकषर्ण देह व मन की समता जानकर किए गए विवाह दामपत्य खुख व स्थायित्व को बढाते हैं|
उदृाहरण >>के लिए  यदि वर या कन्या की कुंड़ली में शुक्र अथवा मंगल सप्तमस्थ है तो इसे यौन उत्तेजना व उदात संवेगों का कारक जानें| वहां दूसरी कुंड़ली के सप्तम भाव में मंगल या शुक्र  की उपस्थिति एक अनिवार्य शर्त  बन जाती है| यदि असावधानी वश सप्तमस्थ बुध या गुरु वाले जातक से विवाह हो जाए तो यौन जीवन में असंतोष परिवार में कलह,  कलेश व तनाव को जन्म देता है| इतिहास ऐसें जातकों से भरा पड़ा है जहां अनमेल विवाह के कारण परिवारिक जीवन नरक सरीखा होगा|
( ३ )लग्न में  मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि होने पर जातक विवाहेतर प्रणय संबंधो की और उन्मुख होता है| कारण उस अवस्था में सप्तम भाव बाधा स्थान होता हैं| अतः यौन जीवन में असंतोष बना रहता है| यदि दशम भाव का संबंध गुरु से हो तो जातक दुराचार मे संलिप्त नहीं होता|
 काम सुख के लिए अभिमान,अंहता यदि विष तो दैन्यता, विनम्रता, सेवा सहयोग की भावना,  रुग्ण दंपत्य को सवस्थ व निरोग बनाने की अमृत औषधीहै|


# इस विषय पर आपको समय-समय पर जानकारी प्रदान करता रहुंगा|

5 comments:

  1. स्वागत है ।


    कृप्या वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दे टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।

    गुलमोहर का फूल

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. welcome, nice article

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  4. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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