मधुर गृहस्थ जीवन कैसे बनाएँ यह प्रत्येक गृहस्थी के लियें ज्योतिषीय द्ष्टि से चितन करना अवश्यक हैं| गृहस्थ जीवन काम-वासना या स्वेच्छाचारिता के लिए नहीं हुआ करता यह एक पवित्र बंधन होता है जिसमें आत्मवंश की वल्ली को निरन्तर बनाने के साथ-साथ लौकिक एंवं पारपौकिक सुख की कामना छिपी रहती हैं| विवाह से पूर्व प्रायः जीवन साथी बचपन से विवाह तक अलग-अलग परिवार के सदस्य होते हैं और बच्चपन के संस्कार प्रायः स्थाई भाव जमाएं रहते हैं, ये संस्कार और स्थाई भाव समय के साथ बदल नहीं पाते और गृहस्थी को नारकीय या स्वणिैम बना डालते है|
ज्योतिषिय गृह योगों के अधार पर एक दुसरे की अपेक्षाओं को समझकर चला जाय तो गृहस्थ जीवन मधुर बना रहता है|
गृहस्थ जीवन के वैसे तो कईं भाग महत्वपूर्ण होते है लेकिन अभिव्यक्ति एंव चितन ही सबसे महत्वपूर्ण होते है छोटी-छोटी बातों पर आशंका करना या अंतर्मन में कुछ और होते हुएं वाणी से कुछ का कुछ कह देना दामपत्य जीवन में बिगाड़ ला देता हैं|
यहां पर कुछ ज्योतिषीय योग दे रहा हूँ| ( 1 ) दादश भाव में धनु या वृश्चिक का राहु हो, चन्द्र शनिदेव सप्तम, दितीय, लग्न या नवम में हो तो एक दूसरे के प्रति भा्तिया, आशंकाएं तथा आत्मभय पैदा करवा देतें हैं|
( 2 ) नीच के गुरु, चन्द्र मीन में बुध-शनि भी अनावश्यक प्रंसगो में आंशकाए खडीं करवा देता है यह योग स्त्री कि कुंडली में हो तीव्रतर प्रभाव डालता हैं|
( 3 ) तीसरे एवं पाचवें भाव का अधिपति सूर्य शनि मंगल में से कोई भी हो तथा नीचस्थ होकर गुरु से संबध कर रहें हो तो अपने ही परिजनो के यवहार में दोहरापन रहने से गृहस्थ जीवन में आशांति हो जाती है|
(4) दुसरे तीसरे स्थान पर नीचस्थ ग्रहो का बैठना अप्रिय भाषण का कारण होता है लेकिन सूर्य वास्तविकता को उजागार करवाता हैं चन्द्रमा चंचलता पैदा करवाकर कुत्रिम व्यवहार करवा देता है जिसकी पोल कुछ समय में ही खुल जाती है और स्वंय को लज्जित भी करवा देती हैं|
(5)सत्तमेश, लग्नेश का नीचस्थ शुक्र से संबंध बना हो या स्वंय शुक्र ही इनका स्वामी हो और नवमांश में हीनाश मंगल के साथ संबंध कर रहा हो तो अंतरंग संबधों को लेकर शीतयुद्ध चलता रहता है तथा इन्ही की महादशा एंव अन्तरदशा आ जाय तब भंयकर विस्फोट की आंशका बन जाती है|
ऐसी स्थती में पुरुष के ग्रह हो तो स्त्री को वयर्थ भातिंयो से बचना चाहिए ऐसी स्थती में सोमवार को भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिएं|
(6 )मंगल-चन्द्रमा कर्क राशि में एक साथ हो तो दोहरी बातें करने के कारण गृहस्थ जीवन में निराधार आशंकाए खड़ी हो जाती हैं
(7 )मीन राशि में बुध के साथ शनि या केतु दुसरे,तीसरे भाव में हो आधी बात छोड़कर रहस्य बनायें रखने कि आदत हो जाती है|
(8 )गुरु - शुक्र मकर राशि में हो तो दोहरी वार्ताओ में दक्ष बनाता है तथा रहस्यवादी होकर भी बहुत व्यवहारिक व्यक्तित्व दिखाईं देता है जबकि आंतरिक रुप से स्वार्थ पराकाष्ठा होती है पुरुष के योग तो संकारात्मक परिणामकारी होते है| लेकिन स्त्री वर्ग को असुरक्षा सी महसुस करवाता है|
( 9 ) दुसरें भाव में पापगृह हो तथा बारहवें भाव में शुभ गृह हो या देखते हो तो जीवन साथी को समझने में भूल करवा देता हैं|
( 10 ) चतुर्थ भाव में शुक्र या चंन्द्रमा नीच राशि का हो तो घर का सुख की क्षति करते है
( 11 ) ब्यव भाव में वृषभ का शनि बकि् हो अब्टम भाव में चंन्द्र,राहु हो गोचर का शनि जब भी मेषराशि पर भ्रमण करेगा उस समय गृह कलह लड़ाई झगड़े.दुर्घटना आदि के योग बनतें है|
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