समाज में ज्योतिष का प्रभाव वैदिक काल से ही रहा है. वैदिक युग में मानव ने ज्योतिष सहित प्रत्येक ज्ञान को आम जन की भलाई के लिए ही प्रयोग किया. कुछ आसुरी प्रवृत्ति के लोगो ने इस ज्ञान का दुरुपयोग किया तो वे राक्षस कहलाये. स्वभाववश सभ मनुष्य सुख-शान्ति एंव आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं. इन सबकी प्राप्ति को सुलभ बनाने हेतु ही परमात्मा ने हमें ज्ञान के रुप में सर्वोत्त्म उपहार दिया है. जीवन में तीन चीजें होती हैं:-
1) साध्य :- मनुष्य जो इच्छा करता है या जीवन में जो भी प्राप्त करना चाहता है/ जहाँ पहुचना चाहता है, उसे साध्य कहते हैं.
2) साधना:- जिस माध्यम / तरीके से मनुष्य अपने साध्य की प्राप्ति करता है वह साधना कहलाती है.
3) साधन :- साधना में सहयोग/ सहायता करने के लिए जिन-जिन वस्तुओं / उपकरणो की आवश्यकता पड़ती है वे साधन के रुप में जाने जाते हैं.
साधन, साधना की पूर्णता के लिए होते हैं. अतः महत्ता साधना की होती है, साधन की नहीं. साधना की गुणवत्ता को बनाए रखने कि लिए कठिन तप (परिश्रम) करना पड़ता है. तप के द्वारा ही साधन में उर्जा दी जाती है (चार्ज किया जाता है) तभी साधन सहायक के रुप में कार्य करने योग्य हो पाता है. वैदिक काल में एक तो साधन प्राकृतिक रुप से उर्जावान होते थे, दूसरे मनुष्य अपने तपबल की शक्ति से उन्हें जाग्रत कर देता थावैदिक काल की भाँति ही वर्तमान युग में ज्योतिष की महत्ता बरकरार (यथावत) है, बल्कि यदि यह कहा जाये कि आज के समय ज्योतिष अधिक प्रासांगिक है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. संसार पर सदा से ही चतुर व्यक्तियों ने राज किया है. चूंकि ज्योतिष आज बिकता है.तो ऎसे अनाधिकृत व्यक्तियों (श्रद्धाविहीन) ने इसका व्यावसायिक दोहन शुरु कर दिया है. जिनका ज्योतिष शास्त्र में तनिक भी विश्वास नहीं. इस सन्दर्भ में यहाँ बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं, परन्तु समयाभाव में ऐसा सम्भव नहीं इसलिए एकमात्र उदाहरण देकर ही हम इसे भली-भाँति स्पष्ट कर सकते हैं.आजकल आप टी.वी. के भिन्न-भिन्न चैनलो पर ज्योतिष सम्बन्धी सामग्री (साधनो) की बिक्री के बारे में देख-सुन सकते हैं कि इस विशेष यन्त्र या माला को खरीदने/ धारण करने से आपको विशेष लाभ होगा तथा इस विशेष वस्तु को अपने पास रखने से आपको कष्टो से मुक्ति मिलेगी. जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि साधन में शक्ति साधना के तप-बल की होती है. मन्त्रो में शक्ति होती है, इस बात पर सन्देह करने का कोइ कारण नहीं परन्तु यहाँ पर विचार करने योग्य प्रश्न यह है कि जो विद्वान किसी धातु के यन्त्र (ताम्बा इत्यादि) को सिद्ध करने का दावा करते हैं क्या वे तपस्वी, श्रद्धावान, ज्ञानी एंव आध्यात्मिक उर्जा से परिपूर्ण है या फिर केवल अर्थ लाभ के लिए सरल एंव पीडित व्यक्तियों की भावनाओं का शोषण करते हैं. किसी विषय का ज्ञान होना एक अलग बात है और उस ज्ञान को सत्यता की कसौटी पर परखना दूसरी बात है. साधना में ज्ञान के साथ-साथ क्रिया पर जोर दिया जाता है. साधना में एक ओर बात तो महत्वपूर्ण होती है, वह है तन, मन एंव बुद्धि की पवित्रता जोकि स्वंय को कष्ट देकर हो(तप द्वारा) प्राप्त की जा सकती है.
यहाँ एक अन्य प्रश्न भी सामने आता है कि क्या इन सब परिस्थितियों के लिए पाखण्डी या ठग ज्योतिषी के साथ-साथ हम सब बराबर के जिम्मेदार नहीं हैं. कोइ भी मनुष्य दुखो का सामना अपने कर्मो या लापरवाही के कारण करता है, कर्तव्यपरायणता एंव न्यायोचित व्यवहार करने तथा दुर्गुणो से दूर रहने पर अधिकतर समस्याओं से बचा जा सकता है. यदि अनजाने में किसी से कोइ पाप हो जाता है तो उसका प्रायश्चित भी उसी को करना पडेगा. भ्रष्टाचार की सम्भावना मनुष्य द्वारा बनाऎ गए प्रशासन में ही हो सकती है, परमात्मा के विधान में नहीं कि कोइ व्यक्ति मात्र धन खर्च करके (अहंकारपूर्ण) अपने पापों से मुक्ति पा सकता है. दान देने से लाभ होता है यह शास्त्रोक्त भी है व सत्य भी है, परन्तु यदि कोइ व्यक्ति अहंकार से युक्त होकर धन के बल पर बिना ग्लानि के महसूस किये यदि यह समझता है कि वह अपने पापों से मुक्ति पा लेगा तो मुंगेरीलाल की भँति स्वप्न ही देख रहा होगा.
उपरोक्त प्रश्नो का सही समाधान यही है कि कष्टो के आने पर व्यक्ति को किसी योग्य ज्योतिर्वेद के पास जाकर सही समाधान के बारे में जानना चाहिये तथा स्वंय कष्ट सहन करके शास्त्रोक्त विधि से विनम्रता पूर्वक साधना करनी चाहिये तभी मुसीबतो से छुटकारा संभव है. क्योंकि स्वंय के मरने पर ही व्यक्ति स्वर्गवासी कहलाता है. अतः हमें टी.वी. चैनलो पर दिखलाये जाने वाले झूठे व भ्रामक प्रचार से बचना चाहिये अन्यथा कुछ व्यवसायी एंव धोखेबाज ज्योतिषियो के कारण ज्योतिष विद्या पर आँच आ सकती है तथा लोगो का विश्वास इस पर से उठ सकता है.
1) साध्य :- मनुष्य जो इच्छा करता है या जीवन में जो भी प्राप्त करना चाहता है/ जहाँ पहुचना चाहता है, उसे साध्य कहते हैं.
2) साधना:- जिस माध्यम / तरीके से मनुष्य अपने साध्य की प्राप्ति करता है वह साधना कहलाती है.
3) साधन :- साधना में सहयोग/ सहायता करने के लिए जिन-जिन वस्तुओं / उपकरणो की आवश्यकता पड़ती है वे साधन के रुप में जाने जाते हैं.
साधन, साधना की पूर्णता के लिए होते हैं. अतः महत्ता साधना की होती है, साधन की नहीं. साधना की गुणवत्ता को बनाए रखने कि लिए कठिन तप (परिश्रम) करना पड़ता है. तप के द्वारा ही साधन में उर्जा दी जाती है (चार्ज किया जाता है) तभी साधन सहायक के रुप में कार्य करने योग्य हो पाता है. वैदिक काल में एक तो साधन प्राकृतिक रुप से उर्जावान होते थे, दूसरे मनुष्य अपने तपबल की शक्ति से उन्हें जाग्रत कर देता थावैदिक काल की भाँति ही वर्तमान युग में ज्योतिष की महत्ता बरकरार (यथावत) है, बल्कि यदि यह कहा जाये कि आज के समय ज्योतिष अधिक प्रासांगिक है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. संसार पर सदा से ही चतुर व्यक्तियों ने राज किया है. चूंकि ज्योतिष आज बिकता है.तो ऎसे अनाधिकृत व्यक्तियों (श्रद्धाविहीन) ने इसका व्यावसायिक दोहन शुरु कर दिया है. जिनका ज्योतिष शास्त्र में तनिक भी विश्वास नहीं. इस सन्दर्भ में यहाँ बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं, परन्तु समयाभाव में ऐसा सम्भव नहीं इसलिए एकमात्र उदाहरण देकर ही हम इसे भली-भाँति स्पष्ट कर सकते हैं.आजकल आप टी.वी. के भिन्न-भिन्न चैनलो पर ज्योतिष सम्बन्धी सामग्री (साधनो) की बिक्री के बारे में देख-सुन सकते हैं कि इस विशेष यन्त्र या माला को खरीदने/ धारण करने से आपको विशेष लाभ होगा तथा इस विशेष वस्तु को अपने पास रखने से आपको कष्टो से मुक्ति मिलेगी. जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि साधन में शक्ति साधना के तप-बल की होती है. मन्त्रो में शक्ति होती है, इस बात पर सन्देह करने का कोइ कारण नहीं परन्तु यहाँ पर विचार करने योग्य प्रश्न यह है कि जो विद्वान किसी धातु के यन्त्र (ताम्बा इत्यादि) को सिद्ध करने का दावा करते हैं क्या वे तपस्वी, श्रद्धावान, ज्ञानी एंव आध्यात्मिक उर्जा से परिपूर्ण है या फिर केवल अर्थ लाभ के लिए सरल एंव पीडित व्यक्तियों की भावनाओं का शोषण करते हैं. किसी विषय का ज्ञान होना एक अलग बात है और उस ज्ञान को सत्यता की कसौटी पर परखना दूसरी बात है. साधना में ज्ञान के साथ-साथ क्रिया पर जोर दिया जाता है. साधना में एक ओर बात तो महत्वपूर्ण होती है, वह है तन, मन एंव बुद्धि की पवित्रता जोकि स्वंय को कष्ट देकर हो(तप द्वारा) प्राप्त की जा सकती है.
यहाँ एक अन्य प्रश्न भी सामने आता है कि क्या इन सब परिस्थितियों के लिए पाखण्डी या ठग ज्योतिषी के साथ-साथ हम सब बराबर के जिम्मेदार नहीं हैं. कोइ भी मनुष्य दुखो का सामना अपने कर्मो या लापरवाही के कारण करता है, कर्तव्यपरायणता एंव न्यायोचित व्यवहार करने तथा दुर्गुणो से दूर रहने पर अधिकतर समस्याओं से बचा जा सकता है. यदि अनजाने में किसी से कोइ पाप हो जाता है तो उसका प्रायश्चित भी उसी को करना पडेगा. भ्रष्टाचार की सम्भावना मनुष्य द्वारा बनाऎ गए प्रशासन में ही हो सकती है, परमात्मा के विधान में नहीं कि कोइ व्यक्ति मात्र धन खर्च करके (अहंकारपूर्ण) अपने पापों से मुक्ति पा सकता है. दान देने से लाभ होता है यह शास्त्रोक्त भी है व सत्य भी है, परन्तु यदि कोइ व्यक्ति अहंकार से युक्त होकर धन के बल पर बिना ग्लानि के महसूस किये यदि यह समझता है कि वह अपने पापों से मुक्ति पा लेगा तो मुंगेरीलाल की भँति स्वप्न ही देख रहा होगा.
उपरोक्त प्रश्नो का सही समाधान यही है कि कष्टो के आने पर व्यक्ति को किसी योग्य ज्योतिर्वेद के पास जाकर सही समाधान के बारे में जानना चाहिये तथा स्वंय कष्ट सहन करके शास्त्रोक्त विधि से विनम्रता पूर्वक साधना करनी चाहिये तभी मुसीबतो से छुटकारा संभव है. क्योंकि स्वंय के मरने पर ही व्यक्ति स्वर्गवासी कहलाता है. अतः हमें टी.वी. चैनलो पर दिखलाये जाने वाले झूठे व भ्रामक प्रचार से बचना चाहिये अन्यथा कुछ व्यवसायी एंव धोखेबाज ज्योतिषियो के कारण ज्योतिष विद्या पर आँच आ सकती है तथा लोगो का विश्वास इस पर से उठ सकता है.